June 26, 2016

दीये का दर्द


अँधेरों से नित्‍य
संघर्ष करता हूँ
प्रतिदिन, प्रतिक्षण जलता हूं
रोशनी के लिए
हर बार तहस नहस करता हूँ
तम के बाह्य साम्राज्‍य को
किन्‍तु...
हज़ार बार जल कर भी

तल का तम मिटा नहीं पाता!!

January 30, 2016

दर्द

कुछ ताज़ा बूँदों की गरमाहट
महसूस हुई बाऍं कंधे पर
फिर गले के गिर्द, जड़ों में
ठण्डेपन का अहसास हुआ
जैसे भीगे नयनों ने कुछ कहा
और आसुओं की मासूम बूँदों ने 
चुपचाप आस्तीन में छिपना चाहा
सिसकियां गले की चारदीवारी में
ख़ामोशी से टूटती प्रतीत हुईं

थोड़ा ऊपर कान के पास
सांसों की तेज और मद्धम
आवाजाही से अंतस्थ दबी
बेचैनियों की अनुभूति हुई
जैसे दर्द अब कै़द से
रिहाई चाह रहा हो
किन्तु सज़ा शायद शेष है
और इसे तब तक सहना लाचारी है

February 3, 2015

दल नहीं यह दलदल है

दल नहीं यह दलदल है
जितने ऐंठन इनमें
उतने बल ही बल हैं
इस पर फेंको
उस पर फेंको
जितना चाहे कीचड़ फेंको
कम है...
दल नहीं यह दलदल है।

April 18, 2014

शब्‍दों की होली

लालू रेल
बिरसामुंडा जेल पहुंचकर फंस गई लालू की रेल
खींचतान कर बाहर निकले, बिगड़ गया सब खेल।
बिगड़ गया सब खेल भइया, छूटे सब संगी साथी 
‘राम’ और ‘हनुमान’ बन चुके अब भगवा के साथी।।

कुनबा
नाथ-नाथ कर बढ़ा रहे हैं कुनबा राजनाथ
पार्टी छोड़कर जाने वाले खुद को पाए अनाथ।
खुद को पाए अनाथ, समय फिर पलटा खाया
रथ रोकने वालों को, मोदी नाम ही भाया।।

अर्थशास्त्र
बिगड़ गई अर्थव्यवस्था, जनता हो गई तंग
भ्रष्टाचार-घोटाले बन गए यूपीए के अंग।
कहें ‘बाबा’ मनमोहन को ले डूबी महंगाई
काम न आया अर्थशास्त्र, चिंता में सोनिया माई।।

बुरे हाल
सर्वेक्षण बता रहे, हैं बुरे नीतीश के हाल
गठबंधन के साथी सामने ठोक रहे हैं ताल।
ठोक रहे हैं ताल, सामने नमो-सुमो की जोड़ी
जाने किसके हाथ आएगी सत्ता की डोरी।।

February 16, 2014

नारी

कभी मेरे,
कभी उनके,
घर की ज़रुरत सी रह
भोर से रात ढले
जांते में पिसती रह
हाय री! अबला सी
तू मत रह
नारी है,
नारी सी रह! 

बंदर के हाथ कपड़े

कपड़े सूखने डाल कर 'बाबा' रहे पछताए
आधी रात बंदर को कपड़ों से जूझते पाए।

वानर जाति अति दुष्‍ट है, कीजिये न इस पर वार
गुस्‍से में आ जाए तो देगा बुश्‍शर्ट फाड़।।

तीन बुश्‍शर्ट फड़वा कर लिया सबक यह सीख
वानर जब दिख जाए तो निकालिए न अपनी खीझ।

संसद में हंगामा

गोल घर में कांड कर गए
राजनीति के भांड! 
लोकतंत्र में दौड़ रहे हैं
कैसे छुट्टा सांड!
जनता की आँखों में अब तक 
जो झोंक रहे थे धूल
चक्कूबाज़ सदन में पहुंचे 
सबकी हिल गयी चूल.